हर उस जगह से अनुपस्थित

सब अपनी समझदारी चुनें
और हैरान हों।
सब देखें रात को होते हुए
और मर जाएँ।
कागज़ों के बीच से उड़ते हुए
मैं बचा ले जाऊँगा ये दुनिया, मुझे ग़ुमान है
और रेत का बवंडर है
सबके पास अपने अपने घर हैं, तब भी।

ख़त्म करो ये किस्सा,
मुझे छुट्टी दो साहब।
मुझे बीमार पड़ना है
और होना है हर उस जगह से अनुपस्थित,
जहाँ आप मुझे तलाशते हैं,
चाहते हैं देखते रहना।



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7 पाठकों का कहना है :

अनिल कान्त said...

कभी कभी आपका मिज़ाज़ मुझे गॅलाइब के शुरुआती दिनों जैसा लगता है, मालूम कीजिएगा कि उनके शुरुआती दिनों में लोग उनके बारे में क्या कहते थे

Ambarish said...

मैं बचा ले जाऊँगा ये दुनिया, मुझे ग़ुमान है
और रेत का बवंडर है
सबके पास अपने अपने घर हैं, तब भी।
AUR FIR
मुझे छुट्टी दो साहब।
मुझे बीमार पड़ना है
और होना है हर उस ज़गह से अनुपस्थित,
जहाँ आप मुझे तलाशते हैं,
KAMAAL HAI JI...

ओम आर्य said...

ख़त्म करो ये किस्सा,
मुझे छुट्टी दो साहब।
मुझे बीमार पड़ना है
और होना है हर उस ज़गह से अनुपस्थित,
जहाँ आप मुझे तलाशते हैं,
चाहते हैं देखते रहना।

क्या बात है!!!!

मन के हर कोने से भावनाओ को निचोडकर निकालते हो जिन्हे शब्द देकर साकार कर देते हो उन अनकहे भावो को अपनी शब्द देकर ..........इसलिये आप मुझे भावो के जादूगर लगते हो !

Dr. Shreesh K. Pathak said...

ओह गौरव भाई...उम्दा प्रस्तुति..!

ये लिखना,,और समानांतर किसी क्षण-विशेष से उबरना या मुक्त होना..और उस कोशिश में फिर-फिर उसी जहाज पर उड़ना..है ना..पर इस बार बिना पर के उड़ना..बस उड़ाते जाना..होके अनुपस्थित...!
बेहतरीन..!

Dharmendra Singh Baghel said...

Kya kahu,Soojhata nahi.Kyo na bina kahe hi samajh lo!
Par ye to taya hai k Chutti(leave) nahi milegi.Kal maine pucha tha par tumne Bataya nahi k "Sudha kaha hai"?

गौरव सोलंकी said...

@धर्मेन्द्र, सुधा खो गई है...पागल हो गई है।

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

वाह जनाब!! ऐफ़े कैफ़े छुट्टी..अभी अभी तो आना हुआ है..अभी तो बस बैठे है...

ज्यादा हुआ तो proxy लगा दी जायेगी.. on a serious note - बहुत बढिया रचना..