हमजोली की गोली और हलवा बनाने की विधि

यह 'रमेश पेंटर और एक किलो प्यार' नामक कहानी का दूसरा हिस्सा है।

इससे पहले - कद्दूकस और तीसरे पीरियड में छुट्टी

क्लास के बच्चे मुझे चिढ़ाया करते थे कि पाकिस्तान ने कहा है कि उन्हें माधुरी दे दी जाए तो वे कश्मीर को भूल जाएँगे। क्या सच में उन्होंने ऐसा कहा था? मैं परेशान हो उठता था और यह बयान ढूँढ़ने के लिए लाइब्रेरी में जाकर सारे पुराने अख़बार पढ़ता रहता था। मेरे दोस्त समीर ने मुझे बताया था कि पाकिस्तान में माँस खाना पड़ता है और वहाँ किसी को भी फाँसी पर लटका दिया जाता है। मुझे रात में नींद नहीं आती थी और जब माँ मेरे पास होती थी, तो मैं उससे चिपककर पड़ा रहता था। बहरहाल वे दूसरे दिन थे और तब कर्फ्यू भी नहीं लगा होता था।

मैं जब तक घर पहुंचा, मेरे शहर में एक सौ अड़तीस लोग मर चुके थे। माँ रात को देर से लौटी थी और मेरे पहुंचने के बाद जब वह जगी तो उसका चेहरा लाल और ख़ूबसूरत था। मैंने चाहा कि उसे कभी पता न लगे कि बाहर क्या हो रहा है। वह फिल्मों की हीरोइनों की तरह किसी दूसरी दुनिया की औरत लगती थी। कभी कभी मैं यकीन भी नहीं कर पाता था कि मैं उसके शरीर का ही एक हिस्सा हूं।

माँ हिन्दी की किताब का कोई पाठ पढ़ाया करती थी- हम बाहर निकलेंगे तो पाएंगे कि झरने, समुद्र, नदियाँ और पहाड़ हैं। यह दुनिया इतनी ख़ूबसूरत है कि जितनी देखो, उतनी कम है।

मैं बाहर निकलता था तो बदहवास चेहरे और ऊबड़ खाबड़ सड़कों पर दौड़ते भागते लोग और शोर मचाती गाड़ियाँ दिखती थीं। वह जो भी ख़ूबसूरत था, मेरे हिस्से नहीं आया था, सिवा माँ के।

शौकत की बीवी नाज़िया के मायके में फ़ोन गया और इधर शौकत की माँ रोई ज़्यादा, बोली कम। नाज़िया की माँ ने कुल मिलाकर यही समझा कि कोई बहुत बुरी ख़बर है, लगभग ऐसा कि शौकत मर गया है। नाज़िया दीवार में सिर मारने लगी और सिर फटने को ही था कि शौकत के पिता का फ़ोन गया। उन्होंने बताया कि शौकत को पुलिस उठाकर ले गई है। यह कोई अच्छी ख़बर नहीं थी, मगर सुनते ही नाज़िया ख़ुशी से उछलने लगी। सब इंस्पेक्टर धर्मवीर चौहान के नेतृत्व में आठ पुलिस वाले उसके घर आए थे और उठाकर ले गए थे। इसी तरह उस दिन, जो अक्टूबर का कोई सोमवार था, मेरे शहर से छप्पन मुसलमान पुलिस ने उठाए। उनमें से सिर्फ़ एक ऐसा था, जो पत्थर मारने और आग लगाने वाली भीड़ के साथ भाग रहा था। लेकिन वह भी मारने वालों में नहीं था। वह इंजीनियर था और उसे दिल्ली मेट्रो की कोई नौकरी जॉइन करने के लिए उसी दिन दिल्ली पहुंचना था। इसलिए वह आग लगी हुई ट्रेन भी छोड़ना नहीं चाहता था।

सब इंस्पेक्टर धर्मवीर चौहान, जिसका जन्म मेरठ के पास के किसी छोटे से गाँव में हुआ था, हमारे घर अक्सर आया करता था। उसके नाम से मेरा पहला परिचय मेरे स्कूल के टॉयलेट में पेंसिल से लिखी गई एक लाइन पढ़कर हुआ। वह मेरे बचपन की सबसे डरावनी पंक्ति थी। लिखा था- धरमवीर चौहान मिस माधुरी की लेता है।

मैं चुपचाप आया और अपनी सीट पर बैठ गया। कुछ भी नाटकीय नहीं हुआ। किसी ने मेरा मजाक नहीं उड़ाया। किसी टीचर ने सब बच्चों को खड़ा करके गुनहगार नहीं ढूँढ़ा। जो लिखा था, वह भी उस दोपहर तक मिट गया। लेकिन मैं डर गया था। मुझे लगता था कि अब किसी भी पल धरती ख़त्म हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं होता। मुझे नीले रंग की जर्सी पहनकर अक्टूबर की एक सुबह चाचा के साथ घर लौटना था और मौत का इंतज़ार करना था।

- तुझे भूख लगी होगी मेरे राजा बेटा...

माँ ने उठते ही मुझे गोद में खींच लिया। चाचा, जो अपनी बाइक धो रहे थे, हमें देखकर मुस्कुराए।

नहीं माँ, मुझे भूख नहीं लगी मगर फिर भी मुझे कुछ खाना है, जिससे सब कुछ भुलाया जा सके।

सामने अख़बार रखा था और माँ उसे उठाकर पढ़ने लगी। उसमें माँ के शो के फिर से हिट होने की भी ख़बर थी। मैं उसकी गोद में था और मेरी ओर जो पन्ना था, उस पर एक सर्वे छपा था, जिसमें एक लाख मुस्लिमों से पूछा गया था कि भारत में किसी मुसलमान का जीवन कैसा है? सत्तर प्रतिशत लोगों ने बहुत अच्छा कहा था, बीस प्रतिशत ने ठीक ठाक, और दस प्रतिशत ने मुश्किल कहा था। फिर किसी शाहनवाज़ अंसारी का लेख था, जिन्होंने कुछ प्राचीन ग्रंथों के माध्यम से सिद्ध किया था कि भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले सब लोग मूल रूप से हिन्दू ही हैं और जो दूसरे धर्मों के लोग हैं, वे सब धर्म-परिवर्तन से बने हैं। मेरी उम्र बारह साल थी और मैं माधुरी वाले बयान के चक्कर में लाइब्रेरी में इतनी किताबें पढ़ चुका था कि यह सब समझ गया। मैंने उठकर टीवी चलाया। ऐसा लग रहा था कि हर चैनल पर हास्य कवि सम्मेलन आ रहे हैं।

हमारे टीवी पर एक सौ चवालीस चैनल आते थे। मेरा जन्मदिन चौदह अप्रैल था और शहर में धारा भी एक सौ चवालीस लगी थी। मैंने इन सबके बारे में सोचा।

धरमवीर चौहान मिस माधुरी की लेता है, यह इस संसार का सबसे निर्मम वाक्य था। इसे सोचते हुए पढ़ा, हँसा, सोया या खाया नहीं जा सकता था। इसे सोचते हुए शहर से बाहर भाग जाने और किसी नदी में कूद जाने का मन करता था या थाने में जाकर धरमवीर चौहान का मुँह तोड़ देने का।

मिस माधुरी के बारे में कई बातें मशहूर थीं। जैसे एक यह कि उसके गुरु पंडित दीनानाथ, जिन्होंने उसे कत्थक सिखाया, उससे बेतहाशा प्यार करते थे और माधुरी के हिट होने के कुछ ही महीने बाद शहर के सबसे गंदे नाले में उनकी लाश मिली थी. एक यह भी कि एक दिन उसने जोर जबरदस्ती की कोशिश करते अपने पिता को बुरी तरह मार-पीटकर घर से बाहर निकाल दिया था. मुझे ये सब बातें मालूम नहीं थीं. मेरा जानना अपने पिता की मृत्यु से शुरु होता था. मेरे पिता, जो अपने इस कथन के लिए मशहूर थे कि वे बस प्यार के भूखे हैं, लेकिन उन्हें प्यार नहीं चाहिए क्योंकि जब कोई किसी से एक किलो प्यार करने लगता है तो वह मर जाता है। बुरा यह था कि यह एक किलो की सीमा किसी भी दिन अचानक पार हो सकती थी। जब मैं ढ़ाई महीने का था, तब एक दिन माँ ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा था कि मौत हमारे शहर में घटने वाली सबसे आम घटना है, इसलिए मैं हर समय उसके लिए तैयार रहूं. बाद में मैंने यह बात कई लोगों के मुँह से सुनी और यह भी कि इसीलिए हमारे शहर में कोई किसी से प्रेम नहीं करता क्योंकि सब जानते हैं कि वे जिससे भी प्रेम करेंगे, उसे बहुत जल्द खो देंगे. बहुत बार तो ऐसा भी होता था कि उस संभावित दुख की अनिश्चितता कम करने के लिए लोग अपनी पत्नियों, मांओं और पिताओं को जिंदा जला देते थे.

खैर, माँ कहती थी कि अब हम जल्दी ही मुंबई चले जाएंगे और तब वह इतनी व्यस्त होगी कि कई बार मुझे उसे टीवी पर देखकर ही संतोष करना होगा. मैं उस दिन के लिए ही तैयारी कर रहा था और अपने आपको कठोर बना रहा था. समय मेरे इतना साथ था कि मेरे सिर पर चट्टानें सी टूटकर गिरती थी और बलात्कार होते थे.

उस रात शो के बाद माँ सीधी घर नहीं आई थी. वह धर्मवीर चौहान के साथ उसकी जीप में बैठकर सिविल लाइंस में उसके घर गई थी. वह शादीशुदा और बाल-बच्चों वाला आदमी था. उसकी पत्नी सुनीता एक आज्ञाकारी गृहणी थी और ऐसी औरतों को चाहिए कि नौ बजे बच्चों को पढ़ाते पढ़ाते सो जाएं और पति जब आए, तब उसे गरमागरम खाना बनाकर खिलाएं और उसकी हर संभव सेवा करें. यदि पति मिस माधुरी के साथ आए तो खाना परोसकर वापस बच्चों के पास जाकर सो जाएँ. मिस माधुरी को चाहिए कि मुस्कुराती रहे और एक बार बाथरूम में जाकर पसीना भी पोंछ ले और लिपस्टिक फिर से लगा ले. अपने पर्स से हमजोली वाली एक गोली निकाले और खा ले. फिर बाहर आए और प्यार करे. प्यार, जो इतना कम है कि साँस लेने के लिए थमो, तब भी खत्म होता जाता है. चादरों और कपड़ों में सलवटें पड़ती थीं और धर्मवीर चौहान के छठी, नौवीं और तीसरी में पढ़ने वाले बच्चे जब स्कूल जाते थे तो बेफिक्र होकर हँसते थे और सोचते थे कि दुनिया सुन्दर है.

चोटों और टॉयलेट की दीवारों पर लिखे वाक्यों के बावज़ूद ऐसा मैं भी कभी कभी सोच लेता था. मगर फिर उस सुबह, कर्फ्य़ू वाली सुबह, जब हम जल्दी में थे और मैं सोच रहा था कि शहर की मौतों की आदत में अब मुझे भी अपना हिस्सा चढ़ाना है, चाचा ने बाइक रोक दी थी. दुनिया गोल थी और चाचा ने मुझे इसके साथ यह भी बताया कि माँ कल रात धर्मवीर चौहान के साथ थी. यह कोई नई बात नहीं थी. मुझे भूख लग रही थी और मैंने चाचा से कहा कि जल्दी चलो, मुझे ब्रेड रोल खाने हैं. चाचा गुस्से से काँप रहे थे और उन्होंने मुझे एक थप्पड मारा. मैं रोने लगा, लेकिन वह शांत जगह थी और मुझे लगा कि यह अच्छा है क्योंकि अब किसी ने मुझे थप्पड़ खाते और रोते नहीं देखा होगा. मगर यह अच्छा नहीं था. कितना अच्छा होता कि वहाँ कोई बड़ा शहर होता और तब चाचा को कर्फ्यू में भी ऐसी सुनसान जगह न मिलती, जहाँ वह बादल जैसा समय था, जो मुझ पर पहाड़ की तरह गिरा.

यूं मेरी उम्र ज्यादा नहीं थी और ऐसा भी हो सकता है कि मेरी स्थायी याददाश्त तब तक बननी शुरु ही न हुई हो. क्या वह कोई और जन्म या कहीं से सुनी हुई कोई भयानक कहानी है? मुझे उस दिन की कई कहानियाँ याद आती हैं और कभी कभी कुछ भी याद नहीं आता. कभी वह किसी बुरे भ्रम जैसा लगता है और कभी काले होते शहर और तूफान जैसा. वहाँ, जहाँ मुझे लगभग बाँध दिया गया था, मैं बार बार वापस लौटता हूँ और भाग निकलने के तरीके तलाशता हूँ, नाकाम रहता हूँ और पछताता हूँ, गालियाँ बकता हूँ.

उस दिन जब टीवी पर मनीषा कोइराला और जैकी श्रॉफ की मिलन नाम की फिल्म चल रही थी, जिसे देखकर संभोग से घृणा होती थी और आत्महत्या कर लेने का मन करता था, तभी चाचा ने मुझे नंगा किया. और मैं भागा, रोया, पकड़ा गया, चिल्लाया, गिड़गिड़ाया. मैंने उनके चेहरे पर थूका, एक अस्पष्ट सी गाली दी, किसी दैवीय जुबान में माफी माँगी, प्रेम और भगवान को याद किया, गायत्री मंत्र पढ़ा, उनके पेट पर मुक्के मारे और दर्द से बिलबिलाया. वहां जंगल के कानून चलते थे और मैंने सजा पाई. तीन घंटे बाद सिर झुकाए हुए जब मैं चाचा के साथ घर लौटा तो सफेद रुई सी माँ उठी और उसने मुझे गोद में लिटाकर पूछा कि क्या मुझे भूख लगी है.

वे ऐसी ही बेमतलब की बातें पूछती हैं. जब उन्हें पता होता है कि हम इतने उदास हैं कि मर जाने वाले हैं, तब वे हमें हलवा बनाने की विधि सिखाती हैं और पूछती हैं कि क्या हमने ब्रश किया.

अगला भाग- उसका फूल सा बच्चा और कुत्तों जैसे दिन



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3 पाठकों का कहना है :

प्रवीण पाण्डेय said...

बालमन को कितना कुछ कचोटता है।

Anonymous said...

poori kahani ek saath daal do gourav ya mujhe mail kar do. very good.-RAVI BULEY

संध्या आर्य said...

.....ये भूख भी बडी अजीब होती है,धीरे-धीरे खत्म हो जाती है और बचे जुठन खा लिये जाने को तरसते है इसमे तू किधर है माँ !बता ना भूख मे या छुटे जुठनो मे!