यह आश्चर्य है

सब कुछ तोड़ ताड़कर
कुछ बना देने की जुगत में मैं
टूटकर करता हूँ तुमसे प्रेम,
बाहर बारिश होने को है
और यह ऐसा है
जैसे उदासी गाड़ रही हो मेरे आँगन में अपने तम्बू।
रह रहकर एक ख़याल आता है
कि जैसे मैंने ले लिया है एक और जन्म
कि मैं कोई और था।

सुनो कोई,
सुनो मछली,
यह पानी है हमारे बीच की आंखों में
और कोई एक आदमी
एक जन्म में कैसे झेल सकता है इतना सब कुछ?

यह आश्चर्य है कि
मुझमें जान है
और कोमल है मेरी त्वचा
और तुम जब भी चाहो,
झट से उठकर मुझे चूम सकती हो।
यह आश्चर्य है सच में
और क्या ऐसी कोई बात है तुम्हारे पास,
जिस पर हंसा जा सके?



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4 पाठकों का कहना है :

Anonymous said...

Ek masoom sawaal.
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

प्रशांत मलिक said...

nahi hai

neera said...

क्या खूब लिखा है!

डॉ .अनुराग said...

और यह ऐसा है
जैसे उदासी गाड़ रही हो मेरे आँगन में अपने तम्बू।

खास सोलंकी स्टाइल .......