हम उन दिनों में जीते हैं

हम अज्ञात अँधेरों के
अकेले सिपाही हैं,
बुरी स्मृतियों के अकेले अवशेष।

क्या यह मेरे और तुम्हारे समय की विडम्बना है कि
सबसे गहरी कहानियाँ
हमें सफ़र में छिपाकर ले जानी हैं
कपड़ों की तहों के बीच
और वे बातें,
जिन्हें याद कर घुटती हैं हमारी जोश में फूलती साँसें
उनके हम अकेले साझेदार हैं।

हमें वह सभ्यता बचाने का ज़िम्मा मिला है
जो कागज़ों और दिमागों के बाहर
कभी थी ही नहीं।
हमें प्यारे हैं
कैदखानों में गुम वे लोग
जिनके जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र भी नहीं हैं।
हम उस ओर जा रहे हैं
जहाँ से उड़ती आती है सिर्फ़ धूल।

हमें हिस्टीरिया सा है।
हम उन दिनों में जीते हैं
जिन दिनों मरे जा रहे थे हम।



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5 पाठकों का कहना है :

M VERMA said...

सबसे गहरी कहानियाँ
हमें सफ़र में छिपाकर ले जानी हैं
===
संजीदा रचना. बहुत खूबसूरत

ओम आर्य said...

boss, Gajab hai!!!!!!!!!

डॉ .अनुराग said...

हमें प्यारे हैं
कैदखानों में गुम वे लोग
जिनके जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र भी नहीं हैं।
हम उस ओर जा रहे हैं
जहाँ से उड़ती आती है सिर्फ़ धूल।

हमें हिस्टीरिया सा है।
हम उन दिनों में जीते हैं
जिन दिनों मरे जा रहे थे हम।






अद्भुत ख्याल .....

अनिल कान्त said...

क्या खूब लिखा है आपने गौरव भाई....वाह....वाह भाई वाह

वेद रत्न शुक्ल said...

हमेशा की तरह बहुत खूब!