यहाँ से देखो

यहाँ से देखो
जहाँ मैं हूं
और मेरा अकेला होना है।
जेल का आखिरी मुलाक़ाती
शरबत पीने की तीव्र चाह में घर लौट जाना चाहता है
और तुम उधर से देखते हो
जहाँ शामियाने, कहकहे और दावतें हैं।
सींखचों के इस पार से देखो ना
जहाँ मैं हूं,
आँखें मलता, झिपझिपाता,
चुप।

मुझे निर्विकार रहकर
कहनी हैं दो चार भली बातें,
उम्मीद बचाए रखनी है
मानवता के ख़त्म होने की आशंका के बीच,
मुझे बचाए रखनी हैं
अपने नाचने और गाने की संभावनाएँ
और जबकि मैं बर्फ़ सा स्तब्ध हूं,
मुझे पूछनी हैं उससे
उसके बच्चों की कक्षाएँ
और गाड़ी की माइलेज़।
ऐसा नियम है।

इस सदी की सबसे ज़रूरी बातें
मैं मुस्कुराती हुई मधुमक्खियों पर ज़ाया कर चुका हूं
और सैनिक विद्रोहों की ख़बरों के बीच
जब मैं बाघ की तरह लुप्त हो जाना चाहता हूं,
मुझे महान बनना है
और दिखाई देते रहना है।

मैं सपने में देखता हूं
लकड़ी के गीले पुल,
टूटती हुई नदियाँ,
रुकी हुई रेलगाड़ियों की छतें लाँघकर
उस पार जाते बच्चे
और निर्मम हत्याएँ।

यहाँ बैठकर देखो,
जहाँ सपने हैं,
कारण और ईश्वर नहीं हैं,
ज़बरदस्ती के सवेरे हैं
और है सूर्य को अर्घ्य देना।

यहाँ से देखो
जहाँ मृत्यु है
और बार बार खीसें निपोरकर जताते रहनी है ख़ुशी
और नर्म आवाज़ में कहना है कि
प्यार से गले तक छके हैं हम।

(केदारनाथ सिंह के कविता संग्रह ‘यहाँ से देखो’ का शीर्षक पढ़ने के बाद)



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10 पाठकों का कहना है :

शारदा अरोरा said...

मन बोलता है तो बोलता ही जाता है , कहने को बहुत कुछ है , पर पाने को क्या कुछ है | मन के सैकडों सवाल , उत्तर सिर्फ एक , कि राह ही सब कुछ है , सफ़र भी मंजिल भी ; इसलिए अच्छा है दर्द बाँट लें , खुशियाँ बाँटें और क़दमों में दम भर लें |
आपने बड़ी सहजता से मन के विचारों को व्यक्त किया है |sundar bahut sundar |

Anonymous said...

yaha se dekho ka matalab mujhe lagata hai man our aatma se dekho .............beautiful

सुशील छौक्कर said...

आपकी लेखनी के तो क्या कहने। आपको तो पता है। यह रचना भी बेहतरीन है। वैसे कई बार सोचना पड जाता है। उसके अंदर की गहराई जानने के लिए। खैर अद्भुत है।

ओम आर्य said...

itne kamra umra men aap itni kamal ki dristi rakhte hain..mujhe bahut aashcharya hota hai

प्रशांत मलिक said...

मुझे पूछनी हैं उससे
उसके बच्चों की कक्षाएँ
और गाड़ी की माइलेज़।
ऐसा नियम है। ...
very true...
bahut gahri baat..

अनिल कान्त said...

गौरव भाई आपकी सोच और लेखनी का कौन ना कायल हो जाए

bhawna....anu said...

ये बहत ही सुंदर रचना बन गयी है...लगभग वैसी जिसकी इंतज़ार बड़े दिन से थी...जिसकी हर पंक्ति में कुछ ख़ास है....शुभकामनाये...!

neera said...

सहज! सुंदर! अर्थपूर्ण! काफी वज़नी है आपका सभी सामान...

Nikhil said...

आप ऐसी रचनाएं लिखकर खुश तो नहीं हो जाते....खुश नहीं हो पाते होंगे, मुझे लगता है....ऊपर से ये तारीफें और दुखी कर देती होंगी....
ख़ैर....

वेद रत्न शुक्ल said...

Guru Jail Me To Ab To Saje-Dhaje Quaidy Najar Aate hain. Behatareen Koshish.... Main To Aapka Prashanshak Hoon.
Aapka hi---
VED