रेडियो, आईसक्रीम और लाल गुब्बारे

हाँ, यह सच है कि
चूड़ीवाली गली के पते पर रात बहुत है,
तुम हो मसरूफ़,
शाम के छ: बजे हैं
और यह दालें उबालने का समय भी हो सकता है।
बन्द हैं आँगनबाड़ियां,
बच्चे और कबूतर् बेबात रोते हैं
और यह दिल को वॉशिंगमशीन की चक्करघिन्नी में धोकर
बालकनी में सुखा देने का समय है।

हम अक्सर बुरे लोगों और निर्मोही बिल्लियों से करते हैं
बहुत सारा प्यार
और उनके इंतज़ार में करते हैं दुर्लभ आत्महत्याएँ।
हम बूढ़े चपरासियों और गर्भवती स्त्रियों का
उम्र भर करते हैं आदर
और सपने देखकर घुटते हुए तहखानों में सोते हैं।

यह एक अजीब विडम्बना है कि
हम अपनी घड़ियाँ, मर्तबान, चश्मे और मोबाइल भी
नहीं तोड़ पाते गुस्से में
और हम सब कुछ तोड़ देना चाहते हैं
और हमारे पास पैसे नहीं हैं।

यह सुन्दर सभ्यताओं के समागम का समय है,
मैं शहर के मध्य में हूं
और लिपस्टिक का स्वाद
प्रेम जैसा क्यों नहीं है?
सच, मैं भूखा नहीं मरना चाहता कोई प्राकृतिक मौत।

मैं फ़ुटपाथ पर बैठकर
तुम्हें करना चाहता हूं बेढंगा प्यार
और तुम्हें सहेजना चाहता हूं।

इस कोलाहल के उपसंहार से पहले
मैं सुनना चाहता हूं तुमसे
तुम्हारा कोई बहुत आम सा दिन,
जिसमें रेडियो, आईसक्रीम और लाल गुब्बारे हों।



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5 पाठकों का कहना है :

ओम आर्य said...

और यह दिल को वॉशिंगमशीन की चक्करघिन्नी में धोकर
बालकनी में सुखा देने का समय है।

Gajab!!!

प्रशांत मलिक said...

purane rang me ho aaj to gaurav ji...
acha likha....

अनिल कान्त said...

यार क्या तारीफ़ करून ...जितनी भी करूँगा वो कम होगी

Unknown said...

गौरव भई बहुत खूब सुन्दर चित्र उकेरा है आपने । बधाई

संध्या आर्य said...

हम बूढ़े चपरासियों और गर्भवती स्त्रियों का
उम्र भर करते हैं आदर
और सपने देखकर घुटते हुए तहखानों में सोते हैं।

kamaal kee vicharabhiwaykatee