उसका बहुत मन करता था कि वह आँखों में तितली या गुब्बारा या माउथ ऑरगन लगाकर सोए।

उसकी आँख खुली तो उसे लगा कि वह चश्मा लगाए हुए ही सो गया था। उससे पिछले दिन वह आँखों पर डर लगाकर सो गया था। उससे भी पिछली दोपहर वह अपना पुराना शहर आँखों पर लगाकर सो गया था और सपने में अनंत फ़ुर्सत से भरी गलियों में कोई हरा जामुनी पतंग लूटने के लिए चक्कर काटता रहा था। जब डर लगाकर सोया था तो नींद में भी वह बहुत अनुशासित रहा था। वह बिल्कुल सीधा सोया था और सीधा ही जगा था। उसने जो चादर ओढ़ रखी थी, सोने के दौरान उसमें एक भी सलवट नहीं बढ़ी थी। उसने सुबह के सपने में अपने सब नाखून बराबर काटे थे, जूते के सपने में कीवी की पॉलिश से देर तक एक्शन के स्कूल टाइम रगड़ता रहा था, दो परांठों के साथ बिना ना नुकुर किए कटोरी भर दही खाई थी, शर्ट को पतलून की गुलामी से बाहर नहीं निकलने दिया था और अपनी दो उंगलियों और एक अंगूठे की आवारा होने की चाहत दबाकर पूरे दिन सुन्दर हैंड राइटिंग लिखी थी। आँखों पर डर लगाने से वह एक साथ अच्छा बच्चा, अच्छा पति, अच्छा पिता, अच्छा क्लर्क बन गया था। स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधानमंत्री ने आदर्श नागरिक के रूप में उसकी मिसाल दी थी और उसकी तनख़्वाह में सौ रुपए बढ़ाने का वचन दिया था। उसने झुककर प्रधानमंत्री के पैर छुए थे और बदले में अपने पुत्र को भी अपने जैसा बनाने का वादा किया था।
डर लगाकर सोने के सपनों में उसकी आवाज़ कुछ ज़्यादा मीठी हो जाती थी और रीढ़ हल्की सी मुड़ जाती थी। बीमार होकर वह जल्दी मर न जाए, इस डर से वह सुबह जल्दी उठने के सपनों में प्राणायाम करता था। दुनिया में कुछ बड़ा हो और कहीं उसे पता ही न चले, इस डर से शाम को साढ़े आठ बजे के सपने में टी वी पर समाचार देखता था। उसकी पत्नी उसे छोड़कर न चली जाए, इस डर से रात सवा दस बजे के सपने में उसे नियम से उसी तरह प्यार करता था, जिस तरह उसकी पत्नी को पसंद था। डर लगाकर सोने के सपनों में बीमे की किश्त और बैंक के खातों के नम्बर भी घूमते रहते थे।
उसका बहुत मन करता था कि वह आँखों में तितली या गुब्बारा या माउथ ऑरगन लगाकर सोए। एक दिन एक तितली उसकी बन्द आँखों में आकर सो गई थी तो उसे बहुत मीठी नींद आई थी, जिसमें बारिश से पहले के सात इन्द्रधनुष थे। लेकिन जब चार बजे का अलार्म सुनकर वह उठा और आँखें खोलकर उसने अपनी पत्नी से चाय बनाने के लिए कहा तो तितली नाराज़ होकर भागती हुई उड़ गई। उस दिन से वह अख़बार के बच्चों वाले पन्ने से तितलियों की तस्वीरें काटकर अपनी सफेद शर्ट की जेब में इकट्ठी करने लगा, लेकिन एक दिन उसकी पत्नी ने घर में रद्दी बढ़ जाने के बाद जगह कम पड़ जाने के डर से उन तितलियों को बेच दिया। उसके बाद रात के सवा दस बजे पत्नी ने उसे उस तरह प्यार किया, जैसे उसे पसन्द था और उसे समझाया कि तितलियाँ बढ़ती जातीं तो एक दिन घर में सिलाई मशीन, आटे के कनस्तर, साइकिल और पलंगों को रखने की जगह नहीं बचती। उसकी पत्नी ने उसे कहा कि उसे तितलियों से डरना चाहिए और गुब्बारों से भी, क्योंकि उनमें पागल कर देने वाला नशा होता है जिसमें आदमी को करणीय-अकरणीय और नैतिक-अनैतिक का भेद भी याद नहीं रहता। उसके बाद उसकी पत्नी ने उसकी छाती के बालों को सहलाते हुए उसके कंधे को चूमा था और वह आँखों में डर लगाकर सो गया था। उसने जो चादर ओढ़ रखी थी, सोने के दौरान उसमें एक भी सलवट नहीं बढ़ी थी।



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3 पाठकों का कहना है :

seema gupta said...

"very interesting story to read, each and every line itself describes the essance of the story, rightly explained that fear of anything changes the mentality and even liking of the person. very touching story read after a long time"
Regards

bhawna....anu said...

"उसकी पत्नी ने उसे कहा कि उसे तितलियों से डरना चाहिए और गुब्बारों से भी, क्योंकि उनमें पागल कर देने वाला नशा होता है...."
कितना सही है....हम जो डर के मारे अपन स्वछंदता पता नहीं कब खो देते है.....कब मशीन बन जाते है...!फिर कहूँगी की आत्मा के बहुत पास से गुज़रा है तुम्हारा कहा फिर से.

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाकई...
अद्भुत संवेदना से परिपूर्ण..
बधाई.