कुछ क्षण : कुछ क्षणिकाएँ

तुझ बिन
एक शहर,
चौंसठ मोहल्ले,
चौबीस हज़ार आठ सौ इकत्तीस घर,
दो लाख दस हज़ार आठ लोग,
तुझ बिन सब मुर्दे,
सब घर शमशान।

हँसी का साल
वो साल
हँसी का था शायद,
हम इतना हँसते थे
कि उड़ने लगते थे
पंखों के बिना।

माँ
माँ की गोद में छिपकर
रो लिया करता हूँ,
कौन कहता है कि
गंगा नहाने से ही पाप धुलते हैं?

किस्सा

कैसा अजीब किस्सा था,
साथ सुना दोनों ने,
वो खिलखिलाकर हँसा
और मैं फूट-फूटकर...

प्रतीक्षा
वो देखती है मेरी बाट
घंटों अमराई में,
ये कहाँ उलझा बैठा हूँ,
कम्बख़्त
वक़्त ही नहीं मिलता।

बेशर्म
पिछले बरस
इसी दिन
मैं मर गया था,
बहुत बेशर्म हूँ,
फिर ज़िन्दा हूँ इस साल।

पुनश्च
दिल की आग से
पलकों पर सुखाता हूँ
गीले ख़्वाब बार-बार,
कोई फिर से जाता है,
यहाँ फिर से बारिश

प्यास
कैसे पीता उसे,
जिसे पूजा था ईश्वर की तरह,
उसे शिकायत रही सदा –
हमारे बीच कभी
प्यास क्यों नहीं जगती?

विश्वास(घात...)
कभी-कभी
भरोसे संभालना
इतना मुश्किल हो जाता है,
जैसे किसी ने
दिल पर पहाड़ उगा दिया हो
और पहाड़ पर काँटे

विदाई
मुआ काजल
याद न करने लगे मुझे
बेमौके,
तुम विदा होना
तो रोना मत।

भूख
हलक में डालकर खुद को
निगल जाता हूँ मैं अक्सर,
ताकि भूख न लगे,
ताकि गिरूँ नहीं।

तेरी मेहरबानियाँ
तेरी मेहरबानियों के मारे
कैसे जी पाते होंगे
बेचारे,
जो कवि नहीं हो पाते

चाँद
सुनो,
चाँद रिटायर होने वाला है,
तुम नौकरी के लिए
अर्ज़ी क्यों नहीं दे देती?



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24 पाठकों का कहना है :

पारुल "पुखराज" said...

बहुत बढ़िया……।किस्सा,पुनश्च,चाँद

राजीव रंजन प्रसाद said...

कर क्षणिका कसी हुई है और गंभीर भी। क्षणिका में महारत है....

*** राजीव रंजन प्रसाद

नीरज गोस्वामी said...

बहुत सुंदर क्षणिकाएँ.
शब्द और भावों का अद्भुत समन्वय.
नीरज

anuradha srivastav said...

गौरव क्षणिकायें लिखने में तुम माहिर हो चुके हो। सभी एक से बढ कर एक हैं।

Unknown said...

good

विश्व दीपक said...

सुनो,
चाँद रिटायर होने वाला है,
तुम नौकरी के लिए
अर्ज़ी क्यों नहीं दे देती?

अद्भुत!
चाँद पर कईयों ने लिखा होगा। पर ऎसा शायद हीं किसी ने सोचा होगा।

पिछले बरस
इसी दिन
मैं मर गया था,
बहुत बेशर्म हूँ,
फिर ज़िन्दा हूँ इस साल।

बहुत खूब!

कैसे पीता उसे,
जिसे पूजा था ईश्वर की तरह,
उसे शिकायत रही सदा –
हमारे बीच कभी
प्यास क्यों नहीं जगती?

इस भाव को क्या कहूँ? नतमस्तक हूँ तुम्हारी लेखनी के सामने।

बाकी क्षणिकाएँ भी बढिया हैं।
बधाई स्वीकारो।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

kamal said...

तुझ बिन
kahan hai
हँसी का साल
meri
माँ
kya
किस्सा
kya
प्रतीक्षा
koi
बेशर्म
hee
पुनश्च
khak
प्यास
hai
विश्वास(घात...)
nahi
विदाई
aksar
भूख
kise
तेरी मेहरबानियाँ
hai
चाँद
dost

sirf topic hee dil ko chhoo gaye
text ka kya kahoo ....

Shiv Kumar Mishra said...

बहुत बढ़िया

Manua Beparwah said...

bhai gaurav ji hum to aapke kayal ho gaye...aapki anya vidhaon se prabhavit the ab tak ab hum aapki is vidha se bhi mantramugdh ho gaye ....bahut sundar likha hai likha hai...PYAAS aur CHAAND vali kshanikayen bahut achhi hain....

बसंत आर्य said...

तुम कमाल के हो यार. इसीलिए तुम्हे तुम कह रहा हूँ आप नहीं. क्या कमाल का लिखा तुमने - तेरी मेहरबानियों के मारे
कैसे जी पाते होंगे
बेचारे,
जो कवि नहीं हो पाते

बालकिशन said...

बहुत ही अच्छी क्षणिकाएँ लिखी आपने
दिल मे हमारे जगह बनाई आपने.

गिरिराज जोशी said...

झक्कास!

अपन ने अर्जी दी थी...जवाब मिला चाँद चाहिये...रात नहीं ;-)

(बेस्ट क्षणिकाएँ == गौरव) = ट्रू

सागर नाहर said...

बहुत बढ़िया क्षणिकायें हैं.. गौरव जी बधाई।

surabhi said...

gauravji
aap ki kshadeekay,ek ksha me hi dil ko chho gayee
yu hi likhte rahiye ga .
regard

डाॅ रामजी गिरि said...

कैसा अजीब किस्सा था,
साथ सुना दोनों ने,
वो खिलखिलाकर हँसा
और मैं फूट-फूटकर...

bahut hi khoobsurat.. dil ko chhuti hai..

अमिताभ मीत said...

कमाल है बस. हद है ....... कि बेहद है ? ख़ैर जो भी है दिल तक पहुँच गया और .......... और कुछ नहीं बस आप का कायल हो गया. आप की लत लग जाने का ख़तरा सताने लगा है. मस्त हो गया हूँ.

दिवाकर मणि said...

गौरवजी,
हर एक क्षणिका लाजवाब है किन्तु इन सबमें भी निम्न क्षणिका दिल को छू गई-
सुनो,
चाँद रिटायर होने वाला है,
तुम नौकरी के लिए
अर्ज़ी क्यों नहीं दे देती?

अद्भुत......

Sajeev said...

मुआ काजल
याद न करने लगे मुझे
बेमौके,
तुम विदा होना
तो रोना मत।
waah, bahut sundar

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav said...

बहुत सुन्दर एवं गहरी क्षणिकायें है, एक से बढकर एक..
चाँद तो सचमुच सोचनीय.. दाद देता हूम आपकी सोच की..

DUSHYANT said...

tera kahne ka saleeka mujhe achchha laga hai, tera lahja mujhe pyara laga hai
kaya kahun basant ji ki tarah aap nahi kah paya pata nahi kyon, ek apnapan mehsoos hua ,ye bhee laga ki bahut der se mile ho dost, khair
tera yun der se milna bhee achcha lagaa hai

Avanish Gautam said...

हँसी का साल, माँ, किस्सा, भूख.. मुझे ज़्यादा पसन्द आईं. अच्छी क्षणिकाएँ. बधाई.

कुश said...

माँ की गोद में छिपकर
रो लिया करता हूँ,
कौन कहता है कि
गंगा नहाने से ही पाप धुलते हैं?


waah.. bahut badhiya..

Anonymous said...

aaki rachnaye bahut hi sunder hai.sidhi aur saral bhasha mei abhivyakti prabhav chodti hai.ka m shabdo mei bhavo ko spashta karne ka samarthya hai aap mei........

Reetesh Gupta said...

आपकी सारी क्षणिकाएँ अच्छी लगी..बहुत अच्छा लिखा है ...यू ही कलम आप पर मेहरबान रहे...बधाई

प्यास
कैसे पीता उसे,
जिसे पूजा था ईश्वर की तरह,
उसे शिकायत रही सदा –
हमारे बीच कभी
प्यास क्यों नहीं जगती?