एक साँवली लड़की जिसकी उम्र नौ साल

उनकी आँखों में सुन्दर पत्थर हैं
ज़बान पर अंग्रेजी जैसे खरीदकर रखी है महंगी
वे अपने चलने में
मेरी हडि्डयां तोड़ते हैं मन में,
सब बड़े लोग
उनके भाई या प्रेमी या दोस्त हैं या होने वाले हैं
उन सबको दुनिया बचाने की फ़िक्र है सोते-जागते
जिसकी बात वे एक सौ अड़तीस रुपए की कड़वी कॉफ़ी पीते हुए करते हैं अक्सर

वे हमेशा विदेश से लौट रहे होते हैं
वे हर सुबह कॉर्नफ्लेक्स खाकर पाइनएप्पल जूस पीकर
करते हैं हिन्दी साहित्य को समृद्ध
बनाते हैं ग्लोबल
मैं हर रोज़ उसमें थोड़ा आम का अचार रखता हूं
उसमें भी फफूंद
इसीलिए उनके सिर में झरने हैं
मेरे सिर में राख
वे पूरी दुनिया को नर्म फाहों से ठसाठस भरी कविता की तरह पढ़ते हैं
आप उसमें पढ़ते क्यों नर्क
कि एक लड़की रोती चली जाती है सड़क पर
और कोई पूछता नहीं पानी।

मैंने उन्हें देखा है, देखते बालकनी से बारिश
उसमें मोती
उसमें कोई विदेशी फ़िल्म और महंगी शराबें और वे पेड़
जिन्हें उगाने का सपना भी हमें नहीं आता
हमें नहीं आता बिना अटके बोलना उनके नाम भी

उनके ड्रॉइंग रूम में पिकासो का चित्र है कोई
और यह पिकासो पर अहसान है उनका
उन्हें पता है, उनके बच्चों और मेहमानों को भी

कि चित्र में झील सफेद क्यों है
और आदमी क्यों आसमान

मैंने उन्हें देखा है, देखते बालकनी से बारिश
समझ में न आने वाले चित्र बनाते हुए
जिसमें नौ साल की वह लड़की कहीं नहीं
जो पीछे चाय बनाती रसोई में
जिसमें चार चूल्हों वाली गैस
और नौ तरह के मुरब्बे
और एक सांवली लड़की जिसकी उम्र नौ साल
यह पहले भी बताया शायद मैंने
और वह कम शक्कर घोलना सीखती चाय में
कम बोलना, हिन्दी बोलना
मैडम लैपटॉप पर कविता लिखतीं, सुनतीं बीथोवन
और बतातीं कि बीथोवन को कैसे सुना जा सकता है
कैसे छिपा जा सकता है बच्ची उसी घर में
जब-जब क्षणों को होना है सुन्दर
, खिंचनी है कोई अच्छी तस्वीर
इस तरह कैसे लगातार लुप्त हुआ जा सकता है
जबकि इतने कैमरे घर में और बाहर - एसएलआर, पीवीआर -
मुस्कुराओ कि तुम्हारी तस्वीर ली जा रही है
मुस्कुराओ कि तुम्हें जवान होना सिखा रहे हैं सर

वह एक सांवली लड़की जिसकी उम्र नौ साल
मेरी बच्ची,
कितनी ऊँची बिल्डिंग, जिससे वह दौड़कर बाहर आती जाने कैसे
जबकि इतने गार्ड और चार-चार तालों वाले दरवाजे
उसकी एड़ियों में खून, बालों में पसीना
कोई सपना नहीं, न ही कोई मोबाइल या नम्बर, ना ही लौटने के लिए घर
आठ सौ साल पुराना शहर, जिसमें पुलिस से लगता सबसे ज़्यादा डर

उसकी एड़ियों में खून, गाल पर नाखून
ऊपर बारिश होती, जो नीचे नहीं पहुँचती
एक्वेरियम से मछलियाँ देखतीं
मैडम की कविता में खिलते हुए पेरिस के गुलाब

प्रार्थना बजती कहीं और कौवे मारे जाते
कि बुरा है काला होना
एक लड़की झांवे से रगड़कर उतारती अपने कूल्हे की त्वचा
जहाँ कल एक अच्छे आदमी ने छुआ था
एक बच्चा कहता कि यह दूध की बोतल है
जिसे बताया जा रहा है साबुन का पानी
शर्त लगती और वह पीकर बताता कि जीतता
बच्ची सड़क पर रेत के घेरे बनाती
और उनमें थूकती जाती।

फ़र्श पर गिरता, रोज़ फटता हमारा सर
कभी मिलता जंगलों के किनारे, कभी रेल की पटरियों पर
और चिकने पन्नों के कितने अख़बार
जिनमें टक टक टूटती उंगलियों का कोई ज़िक्र नहीं
जैसे कहीं जल नहीं रही आँखें, कहीं नहीं गर्दन पर कील,
इश्तिहारों में बस बेतहाशा ख़ुशी, उबासियाँ और जी भर नींद।

समुद्र में नहाती लड़की
और पहाड़ पर धूप।

कितनी कोमल कविताएँ।