उनकी आँखों में सुन्दर पत्थर हैं
ज़बान पर अंग्रेजी जैसे खरीदकर रखी है महंगी 
वे अपने चलने में 
मेरी हडि्डयां तोड़ते हैं मन में,
सब बड़े लोग 
उनके भाई या प्रेमी या दोस्त हैं या होने वाले हैं
उन सबको दुनिया बचाने की फ़िक्र है सोते-जागते 
जिसकी बात वे एक सौ अड़तीस रुपए की कड़वी कॉफ़ी पीते हुए करते हैं
अक्सर 
वे हमेशा विदेश से लौट रहे होते हैं 
वे हर सुबह कॉर्नफ्लेक्स खाकर पाइनएप्पल जूस पीकर 
करते हैं हिन्दी साहित्य को समृद्ध 
बनाते हैं ग्लोबल 
मैं हर रोज़ उसमें थोड़ा आम का अचार रखता हूं 
उसमें भी फफूंद
