यहाँ कोई मेरे पिता को नहीं जानता

उधर उन दिनों रेत कहाँ 
खरीदना होता तो आटा खरीदता हर कोई
उसमें भी सौ झंझट
कोई आटा बुरा आटा नहीं
कोई भूख नहीं अच्छी भूख

मज़बूरियाँ देखकर नहीं रुकती रातें
फ़ोन नहीं करती कि आपके पास घर है या नहीं
क्या आप लेना चाहते हैं हमारी कंपनी का क्रेडिट कार्ड, हम अच्छे लोग हैं
वे आती हैं और बताती हैं कि सोने का डिपार्टमेंट कोई और देखता है
जहाँ मैं लेकर घूमता सिक्के और कोई नहीं बताता कि किसे दूँ रिश्वत

उधर उन दिनों रेत कहाँ
मैं अपने घर से जेब में भरकर लाया थोड़ी मिट्टी
अपने पिता का खून
जिसमें वे उसी तरह गुनगुनाते हैं जैसे दीवाली
जैसे बहुत दूर नहीं कुछ भी
कोई आदमी नहीं बहुत ऊँचा

मैं अपने घर से लाया एक सांकल उतारकर और उनकी शर्ट  
और उन्हें हर तरफ़ लगाया
फिर भी सब उसी तरह आए, उसी तरह आया शहर
मुझे, मेरे दरवाज़ों को भेदता हुआ
और हँसता रहा पूरा वक़्त
मैं ढूंढ़ता रहा पेड़ 

यहाँ कोई मेरे पिता को नहीं जानता
यहाँ कोई नहीं जानता पिता की मृत्यु
यहाँ इन दिनों रेत नहीं है ज़रा भी,
गायें नहीं हैं,
बाकी सब बहुत अच्छा है माँ!