आसमान सबका पर मेरी छत से दिखता थोड़ा

एक आदमी बाघ से बचते हुए मारता बकरी
मैं तोते को बचाता हुआ एक तस्वीर में
दुनिया वैसी ही ठंडी
आसमान सबका पर मेरी छत से दिखता थोड़ा

मेरे रंग का एक भी ढंग का आदमी नहीं
जिसे अपना भाई बताकर मैं चैन की नींद सोता
लड़ाई ख़ुद को लड़नी पड़ती
जीतता कोई और

जब जब मरता, मैं मूँदता आँखें
कि मरने के सीन में एक भी ग़लती नहीं
कपड़े ठीक इस्तरी किए हुए, आँखें सूखी, बढ़े हुए पैर के नाखून

सड़क हमारे लिए नहीं
हमें चाहिए छिपने के लिए बहुत सारी जगह, दीवारें और अँधेरा
एक आदमी जो अपना पता मुझे मुफ़्त में उधार दे सके
दूसरा जो खाना देता हो
फिर भी सोने के बाद अच्छी दुनिया
जिसमें बच्चे जाएँगे स्कूल
बूढ़े धूप में घास पर लेटकर सो सकेंगे
मैं दीवार पर उकेरूंगा अपने मां बाप
और उनमें प्राण फूंकूंगा

सुबह सुबह एक लड़की दरवाज़े पर आकर सिखाएगी सलीका
लेकिन हम किस काम आएँगे, सोचो
हमसे नहीं बनाई जा सकेगी खिचड़ी, खीर
और हमें आलू की तरह नहीं खाया जा सकेगा
हमें भट्टे में ज़रूर सेका जा सकता है
पर हम नहीं बनेंगे ईंट

कब तक उगेंगे हमारी तरह के लोग
कितने दिन चलाएगा कोई हल?
फूल हमेशा रहेंगे बाढ़ की तरह
पर ऐसे धीरे धीरे नहीं आएगी ज़िन्दगी

याद आएगा हँसना
हम फटेंगे जैसे बम