देखना आँख से कितना दूर

बचाया नहीं जा सकता था ज़्यादा कुछ
बचाया जा सकता है के वहम के अलावा
फिर भी पूछकर आती मौत
तो मैंने चुन रखी थी वाकई एक अच्छी जगह
जहाँ मना था जाना इतने साल, फिर भी गया मैं और दस बार पिटा

आस्तीन में साँप नहीं भी हो
तब भी आस्तीन का नाम सुनकर नहीं लगता था कि
किसी अच्छी चीज का नाम है

कभी कभी तीन बातों को कहने पर भी
पूरी नहीं होती थी एक भी बात
देखना आँख से, भूलना याद से कितना दूर से शुरू होता था
मैं कैसे बताऊँ भला

नदी सूखने पर भी नदी ही होती थी
तोता पिंजरे में जन्म लेने पर भी नहीं भूलता कि उसे आसमान और मिर्च से मोहब्बत है
जबकि उसे याद की परिभाषा जैसा कुछ याद नहीं

एक आदमी अपने कद से ज़रा ऊँचा मिला
मैंने उसे याद रखने के लिए हिलाया अपना पहला हाथ
मेरे हाथ में जबकि कोई याद नहीं रखी थी किसी भी मंज़िल पर
उससे पहले भी, बाद में भी
रखी भी होती तो धोने से मिट जाते थे सब निशान
यह भी ऐब की तरह मिटा
कि किसी ने मुझे फ़रिश्ता कहकर चूमा था
जब गोल घूमती थी दुनिया और मैं आप पर यक़ीन करता था

आग लगने पर आग को क्यों नहीं बचाती थी फ़ायर ब्रिगेड
जबकि बाकी कुछ भी ऐसा क़ीमती नहीं था आग के सिवा
जिससे फिर से बनाई जा सकती हो दुनिया

रोना सिर्फ़ रोना नहीं था
लेकिन ऐसा कहो तो कोई भी पकड़ सकता था कॉलर