हमारी जेब पर उधड़ने का जुनून था सवार

हमारी पलकों पर कितनी भी आशा बिछी हो,
हमारे चेहरों पर हो कितनी भी जीत,
हम उन्हें नहीं पकड़ सकते थे
जबकि वे हमारी ताक में थे,
ताक में होने का अर्थ यह है कि हमारी गर्दन पर था उनका हाथ
हमारी जेब पर उधड़ने का जुनून था सवार
और हमारे हाथों में झुनझुने थे, जिनसे करना होता था हर रोज़ मनोरंजन
जबकि मनोरंजन किसी चिड़िया का नाम नहीं है
यह आप बख़ूबी जानते हैं,
आप यह भी जानते हैं कि
हमारे नाखून हमारी ही हथेलियाँ छीलते थे हमेशा,
हमारे मुहावरे तोप में भरकर हम पर ही दागे जा रहे थे,
जब हम थककर सोना चाहते थे,
उनके पास आता था कहीं से ऊर्जा का समुद्र
जिसे, आप कहते हैं कि पैसे से नहीं खरीदी जा सकती,
जैसे आपको बहुत पता है महाशय दुनिया के बारे में
जबकि आप हमारे पेट से नहीं, हमारे चेहरों से हमें पहचानते हैं
जबकि आप नहीं सोए कभी चप्पलों को तकिया बनाकर
आपकी नहीं कटी कभी भिंडियों की तरह उंगलियाँ,
किसी अठारह महीने की लड़ाई में आपका कोई बच्चा आपका चेहरा नहीं भूला

जबकि आप लड़ाई की भयावहता को उसके शोर से पहचानते हैं
हमारी आवाज़ के ख़त्म होते जाने से नहीं
जबकि हमारी औरतें बच्चे पैदा करती हुई भी वक़्त निकालकर
आपके सामने नाच रही हैं, लग रही है सुन्दर
जबकि आप आख़िरी रोशनी हैं, जिसके बुझने पर हम मारे जाएँगे,
मैं अपनी बात का आत्मसम्मान बचाए रखने के लिए
उसे वापस लेता हूँ,
आपको देता हूँ निकलने का आदेश।

तीन मिनट बाद गोलियाँ चलेंगी
जो किसी की सगी नहीं होतीं।



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2 पाठकों का कहना है :

संध्या आर्य said...

आशा, किसी नवेली की
घूँघट में छिपी जिज्ञासा
उतरते ही
खत्म हो जाती हैं
या कम

पर चाहत ऐसी खुशबू
अपनी ही उंगलियो पर
उडता एहसास सा
जिसमे विवशता कैद होती है
खुशबूये चुभती रहती है
तमन्नाओ को
छू लिये जाने तक

समयाभाव में
दूर निकल जाने के
रफ्तार से
घीस रही है
सम्वेदनाये और
नपूंसक हो रही है
धरी सारी मान्यताये
जो थोप दिया जाता है
अल्पसंख्यको पर

साहब कहेंगे की
कोई मजाक है फटी जेब
पर गरीब दर्द है भुख की
जिसमे आशाये टीकने से
इंकार करती है

आवाज
जुबान से नथी गई
या यो कहे
रसोई की
चेहरो जैसी होती है
हमारी घरो की औरते
जिनका लज़ीज़ होना
परम-धर्म कर्तव्य
बुध्दिजीवि वर्ग की
चर्चा की विषयमात्र होती है आवाज
क्योकि उन्हे अपने घरो में
लक्ष्मी बाई पसंद नही

समय की धार
दो तरफा होती है
जिसमे जीवन कम
मृत्यु ज्यादा नजर आती है !!

संध्या आर्य said...

दु:ख फटी जेब
जिसमे सुख के सिक्के
नही टीकते
जैसे गरीब पेट में
फटी भूख
रिसती है बारहमासा

समय के चक्र में
फंसी
आशा और जीत

इत्र में सने रुमाल सा
होता है मनोरंजन
खुशबूओ के पंख लिये
उडता है
पर
समय के साथ

पलको से टंगे
अरमान
जीवन के
सावन-भादो मे
भींगते
सांसो के अंत तक

जीत की दिलाशा
उम्र को
मापने का गुणमंत्र
मुकवाध्य यंत्र सा
बजता
आशा के तारो पर
हरदम

हाथो को ऊपरकर
विलाप करना और
छिले जख्मो को
ढँक लेना
मजबुरी थी उसकी
खारे आंसूँ के
जलन से
बचना चाहती थी !!