भले उनके माथे पर नहीं लिखा है दोस्त

धीरे से बोलते हुए झूठ
मैं अपनी शर्ट को आसमान के रंग में खोलकर
आपको दिखाता हूँ कुछ सुन्दर घाव
जैसे कागज़ की नाव,
जिनमें कल शाम का मेरा अपमान शामिल नहीं है

पानी पीती हुई कोई लड़की
मुझे शीशे में देखती है
जबकि मुझे पानी में कहीं बेहतर देखा जा सकता था,
जबकि बहुत देर और थमा जा सकता था
मैं माँगता हूँ उनसे विदा
जो लाख मुझे रोकना चाहते हैं
पर सोचते हैं कि मैंने नहीं दिया उन्हें यह अधिकार,
जैसे मैं एक कागज़ पर साइन करके दूँगा, लिखूँगा तारीख़ नीचे
जैसे माँगूँगा दो कौर हँसने से ज़्यादा कुछ

मेरी रसोई की दीवार पर दाल के छींटे देखकर भी
जो मेरी भूख मिटने के बारे में आश्वस्त नहीं होते,
फेंकते रहते हैं सवाल पर सवाल,
उन्हें मैंने खरगोश की तरह
अपनी छाती में दुबका रखा है

मैं जब भी कहीं से निकाला जा रहा होता हूँ
ले रहा होता हूँ उनके भीतर शरण



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2 पाठकों का कहना है :

संध्या आर्य said...

एक मुठ्ठी धूप में
सूरज तन्हा
आसमानी कंचन-किरणवाला
सबेरा
सूरजमुखी जैसा

ठंडी हवाओ में
पत्तियो की सरसराहट से होकर
गुजरती सांसे
बेआवाज
सन्नाटो पर फैलती
पानी सी इक छुअन जैसी

पलको पर सोया समंदर
और उसके गहराई मे
डुबता नीला आसमान
तारो से सजे चाँद को बचाते हुये
टांकते जाता शब्दो से
रौशन मुखडा पर
टिमटिमाते अक्षरो से

वक्त के हाँडी मे
पकता महीन सेवईयाँ
जिसे हमसब को खानी होती है
खींच-खींचकर
पर दूँज की तरह मीठा नही होता

बेरोक-टोक चलती है घडियाँ
जिसके उपर
घोडे भी दौड्ते है
पर बिना लगाम
वे माँ की हाथ की तरह
खुबसूरत नही होते!!

Anonymous said...

Hey, I am checking this blog using the phone and this appears to be kind of odd. Thought you'd wish to know. This is a great write-up nevertheless, did not mess that up.

- David