खाली होते हैं घर, लदता है सामान

चिमटे से पकड़कर सूरज को उठाते हुए
याद आती हैं हिदायतें
सपनों का फ़र्ज़ है कि उनके अंत में गुफा हो
और उसमें मृत्यु
मृत्यु महानता की तरह आए
पुजारी करे ईश्वर की तरह माथे पर तिलक
हिजड़े बदतमीज और सपेरे डरावने हों
आप मुट्ठी बंद करें और उल्टे लौटें
दबे पाँव खुले खुले

खुश रहो राजा बेटा!

तंग होते हुए ब्रश करना बाल बनाना
दुखी होते हुए होना ज्ञानवान
पैदा होते हुए पिता
हथेलियों में सहेजकर रखना पुराना पसीना
स्विच दबाना और मरने की एक्टिंग करना
भूल जाना कि किसे किसे रखना था याद
किससे करनी थी नफ़रत
किसे माफ़ और किसे प्यार करना था
नुक्कड़ों से डरकर बाजारों में छिपते हुए
मैं चला जाता हूं कि शाम आती ही है और आएगी
आप उबलते हुए दूध से नहीं धो सकते चेहरा चाहे कितना भी महंगा हो
लिखना कोई एक अक्षर और पूछना सौ हिज्जे, तीस कहानियाँ
स्कूल के जूते बेचकर चाकू खरीदते हुए मुझे लगा
कि हमारे यहां भी होना था जीवन

यह सबसे आखिर में याद आया कि
किसी और के आने में आपको जाना होता है
खाली होते हैं घर, लदता है सामान



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3 पाठकों का कहना है :

चन्दन said...

behatareen!!

ab tum kuchh kharab likhoge tabhi comment karunga..achchhe par wah wah karte karte mera key pad aur laptop dono thak gaye hain

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

मै भी चन्दन से सहमत हू :) खुदा करे ये वाली फ़ार्म बरकरार रहे :)

संध्या आर्य said...

मद्दारी के पिटारे मे कई बार देखे थे खौफ
जो घर के दरवाजे पर ला कर छोड देते थे साँप
जागती आंखो को भागने होते थे खुले पाँव पीछे
जब नफरतो के बीच मरना और प्यार के बीच
जीने की विवशता
और भूल जाना मौलिक दर्द
कुछ पा लेने की चाहत मे
बेच देने सामान थोडे
पिता के जनमते ही बच्चे का मर जाना
और हो जाना
संसारिक !