एक आदमी था, एक थी औरत

हरी धूप में हरी बातें,
पीली धूप में पीली बातें,
तुम्हारा अपना सफेद रंग
कोई तुमसे बिना पूछे उठा ले गया है पगली।
मेरा नीला उदास हो जाना
कोई दुर्घटना नहीं,
ऐसे में मैं सुना सकता हूं तुम्हें
हँसी की सबसे प्यारी कहानियाँ।

हँ सो कि ख़ त्म हो र हा है नी ल
अँ धे रे को ज ग ह दे ने के लि ए,
क म जो र बा लों की त र ह टू ट ते जा ते हैं श ब्द।

तुम्हें इतना अच्छा लगता है ना हँसना,
अब हँसो उसी तरह
जैसे इंडिया गेट घूमते हुए हँसती हो,
नहीं तो मारी जाओगी,
सच कहता हूं।

आधी रात में भाट गाते हैं विरुदावली।
माँ ने सिखाया है कि
कायर लोग करते हैं प्रेम,
कायर लोग मोमबत्तियों पर हाथ रख लेते हैं शपथ,
कायर बच्चे कहानियाँ पढ़ते हैं,
कायर पुरुष गढ़ते हैं कविताएँ,
कायर स्त्रियाँ घर से भाग जाती हैं।
कायरों की पूरी जमात से
ख़ौफ़ज़दा हैं साहसी लोग
इसलिए दफ़्तर जाने वाले वीरों
और बच्चे पैदा करने वाली वीरांगनाओं के लिए
भाट गाते हैं विरुदावली।

उत्साह जवानी में होने वाली एक लाइलाज़ बीमारी है
जिसने बिना आवाज़ किए लील ली हैं
संसार की सबसे काबिल नस्लें।
सबसे बुद्धिमान लोग हो गए हैं पागल,
सबसे सच्ची किताबें प्रतिबंधित कर दी गई हैं,
संसार के सबसे उत्साहित युवा
कर बैठे हैं प्रेम
बर्फ़ीली चोटियों और रहस्यमयी अँधेरी कन्दराओं से।
इतराओ मत,
मेरा मतलब तुमसे नहीं है...

एक आदमी था,
एक थी औरत,
एक आकाश था,
थोड़ी सी खुशी और
कुछ अमर तिलचट्टे थे,
ढेर सारे एकांत में थीं मुट्ठी भर वर्जनाएँ,
आदमी की हथेली में थी औरत की रीढ़।
कुछ ज़रूरी भेजी गई-गैरज़रूरी पाई गई चिट्ठियों
और खो गई तस्वीरों के अलावा
एक और बात थी
जो किसी को याद नहीं रही।

दुनिया की सबसे उदास बातें
किसी भी भाषा में नहीं कही जा सकती।
कविता लिखना कुछ कुछ
बिन माँ के बच्चों के रोने जैसा है।



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9 पाठकों का कहना है :

Puja Upadhyay said...

बेहतरीन कविता, अन्तिम पंक्तियाँ झकझोर गयीं...
कविता लिखना कुछ कुछ
बिन माँ के बच्चों के रोने जैसा है।

पारुल "पुखराज" said...

bahut saari baaten hain yahan..bahut acchhi!!

विश्व दीपक said...

बढिया !!!!
मुहावरें और बिंब हर बार नए मिलते हैं तुम्हारी कविताओं में.....कभी भाव भी नया लाओ।

कायर लोग प्यार करते हैं......प्यार करना वर्जना है.....इन बातों को(व्यंग्य-बाण के साथ) तुम कई तरीकों से कह चुके हो,इसलिए कुछ नयापन वांछनीय हो गया है।

वैसे तुमने जनता की नब्ज पकड़ी हुई है। जो भी लिखते हो, अच्छा हीं लगता है।

बधाई स्वीकारो।

अमिताभ मीत said...

अच्छी लगी आप की कविता .... बहुत अच्छी.

bhawna....anu said...

ढेर सारे एकांत में थीं मुट्ठी भर वर्जनाएँ,
..............
बहुत उम्दा लिखा है.....ऐसे ही लिखो.शुभकामनाये

neera said...

बहूत अच्छी कविता है किंतु मैं नही मानती की कविता लिखना बिना माँ के रोना है :-)

vijay kumar sappatti said...

Dear Gaurav,

इस बार तो कमाल कर दिया . बहुत ही अच्छी बात , शब्दों के जरिये से दिल के भीतर समा गई . और कविता में मौजूद undertone ,हमें एक नया thought देती है . . और आपकी रचना एक पुरानी सी बात को इंगित करती है . पर हम सब इस बात से जीवन भर अज्ञान रहतें है ... बहुत अच्छी रचना .. मन को छु गई ....

बहुत बहुत बधाई

विजय

Note : pls visit my blog : www.poemsofvijay.blogspot.com , इस बार कुछ नया लिखा है ,आपके comments की राह देखूंगा .

Manuj Mehta said...

क्या कहूं

jj said...

khubsurat..