बस एक रात और हाय रब्बा!

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छत को गिर जाना है किसी दिन
अचानक टूटकर मेरे ऊपर
और जब रात भर गोल गोल घूमती है धरती
मेले वाले बड़े झूले की तरह
(मैं नहीं मानता गोल गोल घूमना
मगर कोई इसे सिद्ध करने के लिए
फाँसी चढ़ गया था शायद कभी।
एक बलिदान पर सौ झूठ हों सच।
आमीन!)
तो उस अचानकता को बचाए रखने के लिए
यह छत टस से मस नहीं होती।
तुम फ़ोन पर मुझसे कहती हो – अपना ख़याल रखना,
मुझे याद आता रहता है गार्नियर का विज्ञापन।
बहुत सारी तुम भी।

जो टीवी देख सकते हों,
कम से कम उन्हें तो नहीं करना चाहिए था
किसी से प्रेम।



आज रात बर्फ़ गिरेगी दिल्ली में,
चाँद जम जाएगा
या कम्बल ओढ़कर करता रहेगा प्यार।
काश कि बर्फ़ न गिरे,
इतनी गर्मी हो कि चाँद आसमान के बिस्तर से उठकर
आ खड़ा हो छत पर,
मैं दूर खेतों में खड़ा झलता रहूं साँसों का पंखा।
चाँद कुँवारा सोए
और कुँवारा जग जाए
बस एक रात और
हाय रब्बा!



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8 पाठकों का कहना है :

डॉ .अनुराग said...

आज रात बर्फ़ गिरेगी दिल्ली में,
चाँद जम जाएगा
या कम्बल ओढ़कर करता रहेगा प्यार।
काश कि बर्फ़ न गिरे,
इतनी गर्मी हो कि चाँद आसमान के बिस्तर से उठकर
आ खड़ा हो छत पर,
मैं दूर खेतों में खड़ा झलता रहूं साँसों का पंखा।
चाँद कुँवारा सोए
और कुँवारा जग जाए
बस एक रात और
हाय रब्बा!



लाजवाब दोस्त........बहुत अच्छे

DUSHYANT said...

i think u r repeating urself..think of it seriously...

Anonymous said...

wah kia baat hai ..........kia likha hai..........yeh baat alag hai mere ko jayda samjh nahi aaya.............poet sir......:)..........bt keep writing ek din jarur samjhungi sure.............:).......ViJaya

Manuj Mehta said...

जो टीवी देख सकते हों,
कम से कम उन्हें तो नहीं करना चाहिए था
किसी से प्रेम।


आज रात बर्फ़ गिरेगी दिल्ली में,
चाँद जम जाएगा
या कम्बल ओढ़कर करता रहेगा प्यार।
काश कि बर्फ़ न गिरे,
इतनी गर्मी हो कि चाँद आसमान के बिस्तर से उठकर
आ खड़ा हो छत पर,
मैं दूर खेतों में खड़ा झलता रहूं साँसों का पंखा।
चाँद कुँवारा सोए
और कुँवारा जग जाए
बस एक रात और
हाय रब्बा


यार गौरव, क्या है यह..... यार तुम भी न कहाँ कहाँ उड़ा लिए जाते हो. बहुत खूब मेरे भाई.
तुम्हारी सोच को जब सोचता हूँ तो अपनी सोच का दायरा और बड़ा करना पड़ता है.

Anonymous said...

Maza aa gaya Guru. kitne rahyasymai ho tum ye tumhari kavita aur kahani bata deti hai......

bura mat manana_____
ek din ek bandhu ne kuchh alag hi baat likhi thee, use pracharit karna zaise mera farz ban gaya hai... har jagah patakunga neeche wale hisse ko... so bura mat manana ke dusaron ki ke lekh ko apke comment page par patak diya ...

Vichar:-
किसी घर में कितने बच्चों की संख्या को सही कहा जा सकता है ? " मेरे ख्याल से सिर्फ दो" अगर में और पूरा भारत चाहे के उसके घर में एक लड़का और एक लड़की पैदा हो, तो हमारा और सबका परिवार खुशहाल हो जायेगा, पोपुलेशन नहीं बढेगा, लड़के-लड़कियों की संख्या देश में बेलेंस हो जायेगी. पर अगर दोनों लड़के या दोनों लड़की हो जाएं तो,.... मेरे ख्याल से घर में हमेशा रक्षाबंधन खलेगा, घर सूना-सूना लगेगा, परिवार कम्पलीट नहीं लगेगा, इसका समाधान विज्ञान के पास है ... पर सरकार इसको इसलिए प्रतिबंधित कर चुकी है की कहीं गवांर इसकी सहायता से दहेज़ के लिए लड़कों की झड़ी ना लगा दें,.. अगर सरकार चाहे तो इसे आबादी कंट्रोल करने वाली मशीन की तरह उपयोग कर सकती है, क्योंकी अगर मुझे मेरे घर में बेटी चाहिऐ तो में तब तक उसका इंतजार करूंगा जब तक की बेटी नहीं हो जाती भले ही इसके एवज घर में लड़कों की लाइन लग जाये, और अगर फिर भी नहीं हुई तो मेरी किस्मत फूटी है,.. तब सरकारी मुसीबत ने मेरे घर को अफेक्ट किया,... अगर लिंग संतुलन की बात है, तो इसका उपयोग प्रतिबंधित करने के बजाये उतनी ही सख्ती और इस शर्त के साथ किया जाये की हर देशवासी इसका मुफ्त उपयोग करकर सिर्फ एक लड़का और एक लड़की की सुनिश्चितता तय करें..... ये क्रांतिकारी मशीन है जिसका उपयोग किया जाता है बच्चों में जन्म से पूर्व जेनेटिक प्रोब्लम का पता लगाने के लिए, की कहीं बच्चा मन्दबुद्धी तो नहीं होगा. कहीं थेलासीमिया से ग्रसित तो नहीं है, हाईट हेल्थ या शारीरिक विकृति तो नहीं है. अगर पाई जाती है तो उन्हें जेनेटिक इन्जीनिअरिंग से ठीक किया जा सकता है अपितु भ्रूण नष्ट कर दिया जाता है, ताकी बच्चा इतनी बुरी विकृतियों के साथ पूरे जीवन को शूल की तरह भुगतने के लिए मजबूर न हो,... आज सरकार की इतनी कड़ी पहरेदारी के बीच इसका उपयोग, जन्मपूर्व बच्चे में विकृति जानने तक के लिए भी जनसामान्य मुसीबत और डर या जानकारी के आभाव में इसका उपयोग नहीं करता... खैर ये तो प्रतिबंधित नहीं है पर सरकार इसकी इस सुविधा का प्रचार नहीं करती और इसे छुपा कर रखती है. इससे होता क्या है?.. स्पेशल स्कूल में भर्ती कितने ही बच्चे इसके उपयोग से इस जालिम जीवन को भोगने के लिए इस दुनिया में नहीं आते या सामान्य होकर सामान्य बच्चों की तरह सामान्य जीवन जीते. इसकी जिम्मेदार, सरकार की संकुचित सोच है.... क्या आप में से कोई भी ऐसा चाहेगा की आपके घर में केवल लड़के हो? " मेरे ख्याल से कोई भी नहीं." क्या आप में से कोई भी चाहेगा की आपके घर के आँगन में सिर्फ एक लड़की और एक लड़का हो ? " मेरे ख्याल से आप सभी बल्कि पूरा देश ऐसा ही चाहता है.... तो फिर ये लागू होना चाहिऐ, भले ही सख्ती के साथ पर ये कम्पलसरी हो तो स्पेशल स्कूल की ज़रूरत नहीं पड़ेगी... बेटा या बेटी की चाह में बच्चों की लाइन नहीं लगेगी. सम्भावना है आबादी कंट्रोल होने की, नारी-नारा संतुलन की.
इस भ्रूण हत्या की मशीन कही जाने वाली यह मशीन जनसामान्य की ज़रूरत भी है और हर भ्रूण का हक़ भी ताकी वो सही रूप से जीवन का आनंद लेने की गेरेंटी के साथ धरती पर कदम रखे,
वैसे भी जहाँ तक में जनता हूँ बनना शुरू हुए भ्रूण में जान(लाइफ) नहीं होती उसे दर्द नहीं होता. इसलिए हत्या शब्द सही नहीं है.

Pawan Kumar said...

गौरव
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया. कम्मल का लिखते हैं आप. इतनी कम उम्र में यह विज़न और लिखने का तरीका वाकई लाजबाब है.
आज रात बर्फ़ गिरेगी दिल्ली में,
चाँद जम जाएगा
या कम्बल ओढ़कर करता रहेगा प्यार।
काश कि बर्फ़ न गिरे,
इतनी गर्मी हो कि चाँद आसमान के बिस्तर से उठकर
आ खड़ा हो छत पर,
मैं दूर खेतों में खड़ा झलता रहूं साँसों का पंखा।
बहुत अच्छा .......अच्छा.....अच्छा...........

दीपाली said...

बहुत अच्छी लगी आप की कविताये....
अभी प्रकाशित कविता में आपके ब्लॉग के बारे में सुना और खोज के यहाँ भी पहुच गई..

Unknown said...

didnt understand....