तुम्हारे नक्शे में साइकिल

एक साइकिल मेरे पास थी
जिसे चलाना तुम सीखना चाहती थी
लेकिन वह हफ़्ता दफ़्तर में बीता
तुम जानती ही हो कि कितना ज़रूरी था काम
मैं कैसे ललचाई नज़रों से कारों को देखता था
कैसे हम नज़रें चुराते थे जब तुम पड़ती थी बार बार बीमार
और ठीक होने का इंतज़ार करते थे
ठीक होने के बाद करते हुए याद
कि ओह, याद ही नहीं रहा हमें कि जाया जा सकता था डॉक्टर के पास

कैसे हम आयुर्वेद और होम्योपैथी और भले बैक्टीरियों के भरोसे ज़िन्दा थे
जो हमारे जिस्म में रेंगते थे
और बाहर सड़क पर इतने सारे
कैसे हमारी चमत्कारों में इतनी आस्था थी
कैसे हम मान लेते थे कि आज सूरज देर से डूबा
तो कल का दिन अच्छा होगा
आज तुम्हें सपने में दिखा हिरण
तो कल जी रहेगा ठीक-ठीक सा

मैं तुम्हें ठीक करने किसी पहाड़ पर ले जाना चाहता था
तुम पोंछना चाहती थी मेरे माथे का पसीना
जो लगातार बहता है अब भी देखो,
तुम ठीक कहती थी कि मेरे सिर में है कोई झरना
तुम ठीक कहती थी कि कभी नहीं सिखाऊँगा मैं तुम्हें साइकिल

और मुझे हँसी आती थी तब