इतना रवाना हुए कि घर भी पहुँचने की तरह लौटे


हैरानी हमें ही होनी थी सारी

बाज़ार जाने की तरह तैयार रहता था घर
जिसमें सुन्दरता इतनी थी कि पूछकर घुसता था जीवन
बाहर उतारकर जूते
जबकि ज़रूरी कुछ नहीं था

चोरी की तरह मैं किसी और से बता रहा था तुम्हारी बात
कि एक लड़की अपनी तस्वीर में से मुझे जानने की तरह देखती थी
जब-जब मैं तुम्हारी पीठ पर छिपा होता था
तुम मुझे मारने दौड़ती थी इतनी प्यारी 

आग के किसी अंतिम हिस्से के बीच
जैसे हवा कमरे के अन्दर आती थी
और हम जलने को भूलकर देखते थे अपना साँस लेना
उससे सुन्दर कोई दृश्य नहीं, बस एक कि तुम आती हो सिर पर बैग धरे
दूसरा कि मैं रोता हूँ

मछलियाँ पानी से बाहर कूदकर मरती थीं जब
हम कितनी तमीज़ से देखते थे टीवी जैसे दरिया बनाते हैं
हमारे चेहरे किसी अच्छे रंग के हो रहे थे और वह लाल नहीं यक़ीनन
पर लाल कहेंगे तो यहाँ अच्छा लगेगा

बाँसुरी खरीदने से नहीं आता था उसे बजाना
बजाना आने भर से नहीं खरीदी जा सकती थी बाँसुरी
बाकी तो क्या कि जून था और अफ़सोस तो थे बहुत
पर उसी तरह बर्फ़ को तुम छिपकर कहीं बो आती थी

तैरने पर पानी को जाना पहली बार
ये कि पीना बेकार था किसी भी तजुर्बे की तरह

अच्छा यह कि हम जितना जानते थे, उतना कम जानते थे
जितना तैयार होकर आते थे, उतने लगते थे भद्दे
इतना रवाना हुए कि घर भी पहुँचने की तरह लौटे
खटखटाने पर खुला दरवाजा