भयानक

फायदा इस बात में था
कि भागा जाता दोस्तों
लेकिन उसे हर बार की तरह लगा
कि कुतुब मीनार या पागल हो जाना चाहिए।

वे सब कतार में एक साथ
अलग-अलग थे
और काम यूं करते थे
जैसे करते हों प्रेम,
प्रेम इस तरह, जैसे मरे जाते हों अभी,
मरते ठंड और भूख से ही थे सब वैसे तो।

कुछ को मारती थी पुलिस,
कुछ को अँधेरा
और कुछ को समझदार होना।

शब्द खाली होते जाते थे
अपने मतलबों की तरह
और यूं लगता था कि कविताएं बच्चे लिखते हैं।



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2 पाठकों का कहना है :

Satya Vyas said...
This comment has been removed by the author.
Satya Vyas said...

कई बार लिखा फिर बैक स्पेस दबा कर मिटाया. बावाकिफ होने से बेवकूफ होना कहीँ ज्यादा बेह्तर है .

उम्दा
सत्य