जब तुम पिक्चर देख रही थी

सब मजेदार कहानियां तुम्हारे गर्भ में ही थी

और मैं जब उन्हें स्कूल लेकर गया

मार्च में रिक्शा पर अपने साथ,

तब बहुत हवा थी, सूरज सूखता था, गुलाबी फ्रॉक पहनती थी लड़कियाँ

और मर जाने का मन करता था।

दीवारों का रंग अमीर था

और मैं भूलता गया तुम्हें याद रखना।


मैं सरल रेखाएँ, ज्यामिति के नियम, ठंडी कुल्फियाँ,

बिना दर्द की आँखें,

आक के पौधे

और बचपन के छिछोरे अपमान भी भूला।

मैं भूला ऊबने के अर्थ,

बेबस और ध्वस्त होना भी।

कुर्बान होने के खयाल के साथ साथ

मैं भूला पेट का भीतर तक सिकुड़ जाना,

भरना साँस,

माँगना मोहलत और माफ़ी।


सुबह से बुझा जाता है हौसला,

यूँ होता है कि कुछ नहीं होता।

याद नहीं आता कि

प्यार किया था और रोए थे एक गँवार दिन।

जिस कहानी पर मेरा दिल

महंगे सेब सा खिलता था,

उसे धो धोकर निचोड़ा मैंने

और गाली खाई (या मार?)।


वे बच्चे

जो तूफ़ान में अनाथ हुए थे,

जब तुम पिक्चर देख रही थी,

मैं उन्हें जन्म देना चाहता था।



आप क्या कहना चाहेंगे? (Click here if you are not on Facebook)

14 पाठकों का कहना है :

M VERMA said...

वे बच्चे
जो तूफ़ान में अनाथ हुए थे,
जब तुम पिक्चर देख रही थी,
मैं उन्हें जन्म देना चाहता था।
प्रसव वेदना है रचना में. गहराई तक उतरती है

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

अमिताभ मीत said...

बेहतरीन ! बहुत ही बढ़िया है भाई !!

सागर said...

इस टेस्ट से कई दिनों से वंचित था... शुक्रिया

डॉ .अनुराग said...

जाने क्यों महेश भट्ट की मूवी जख्म का एक गाना याद आया .एम् एम् करीम की आवाज में ....."..मां ने कहा तू चाँद है "

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

:) :)

maayne dhoondh raha hoon.. poochoonga nahin..

Dharmendra Singh Baghel said...

kya bat hai!bahut achche. par dino - din aur klisht hue jate ho, der - der tak gayab rehna band karo bhai,regards

देवेन्द्र पाण्डेय said...

इस कविता को पढ़कर लगा कि दर्द के चित्र ऐसे भी खींचे जा सकते हैं..!

Anonymous said...

आज समझ में आयी

सुशीला पुरी said...

सुंदर लिखा है ....

चन्दन said...

bahut dino baad kuchh bahut achchha padha.
kamaal!

सुशील छौक्कर said...

आपके लिखने के अलग स्टाईल के हम बडे फैन है जी। जब भी लिखते हो कमाल लिखते हो।

Satya Vyas said...

NAHI MAIN YAHAN IS POETRY PER COMMENT KARNE KE LIYE NAHI HOON.............
MAHINO SE TUMHARE BLOG PER AATA HOON OR KAVITAYEN PADHTE HUYE " PYAR NAHI KARNE WALI LADKIYAN " TAK JA KE RUK JATA HOON.

OR US PER KUCH BHI COMMENT KARNE ME MUJHE APNE LAFJO KI GURBATI KA EHSSAS HOTA HAI.
BAHUT ACHI RACHNA GAURAV...........
SATYA A VAGRANT.

प्रशांत मलिक said...

जिस कहानी पर मेरा दिल महंगे सेब सा खिलता था, उसे धो धोकर निचोड़ा मैंने..

ye lines to samajh me aa gyi..
baki ki kosis jari hai