एक शहर की एक गली में

एक शहर की एक गली में कोई मेरा रहता था
आज सुना, मातम है वहाँ, कौन मरा, बतलाओ ना

कैसा मौसम, कैसी हवा है, कैसा मर्ज़ है, कौन दवा है
खून टपकता आँखों से, कोई मुझको समझाओ ना

रात थी बेचारी बेसुध, दिन गुमसुम और खामोश रहा
आओ दर्द की रातों में कोई तो आग लगाओ ना

सबकी बातें डूब गईं, सब लफ़्ज, जुबानें राख हुई
मेरे दिल की बात सुनो और अपनी कह जाओ ना

चाँद उतरकर आता था अम्मी की लोरी सुनने को
अब नीम पे अटका रहता है, मेरी माँ को बुलवाओ ना



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6 पाठकों का कहना है :

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर ! परन्तु जब तक चाँद के लिए एक नीम का पेड़ है तब तक चाँद व देखनेवाला दोनों भाग्यशाली हैं ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

क्या बात है, गौरव....बहुत बढ़िया.

Batangad said...

नीम का पेड़ तो अब रहा नहीं। चांद पे तो रोज-रोज चले जा रहे हैं

सुजाता said...

बढिया कविता !

Anonymous said...

रात थी बेचारी बेसुध, दिन गुमसुम और खामोश रहा
आओ दर्द की रातों में कोई तो आग लगाओ ना

सबकी बातें डूब गईं, सब लफ़्ज, जुबानें राख हुई
मेरे दिल की बात सुनो और अपनी कह जाओ ना

चाँद उतरकर आता था अम्मी की लोरी सुनने को
अब नीम पे अटका रहता है, मेरी माँ को बुलवाओ ना
झकझोर देने वाली बेहतरीन पंक्तियाँ.मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"

सतपाल ख़याल said...

IS IT POEM OR GHAZAL.. IF IT IS GHAZAL IT SHOULD BE IN METER IF IT IS FREE VERSE POEM THEN ITS OK......