पागल-पागल

एक ज़िद्दी लड़का,
जो देखता था ख़्वाब
और जिसने
पेट को भी दिल बना लिया था,
उसे खिलाई गई जबरन
भूख की रोटियाँ
कि वो अब भूख के मारे
चूसता है अपना अँगूठा,
वह बच्चा हो गया है,
वह पागल हो गया है
और एक समझदार लड़की,
जो नहीं देखती थी ख़्वाब,
फेंकती थी पत्थर
लड़के के सपनों पर,
उसे लकवा मार गया है,
बोलती है
तो देखकर लोग हँसते हैं,
वह बूढ़ी हो गई है,
वह पागल हो गई है,
अब दोनों खेलेंगे
पागल-पागल,
खूब तमाशा होगा,
गोल-गोल काटेंगे चक्कर
और लोग हंसेंगे,
पागल हो जाएँगे,
कि सब खेल रहे हैं,
खेलेंगे पागल-पागल,
आह!
ख़्वाब-ख़्वाब क्यों नहीं खेलता कोई?



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पाठक का कहना है :

Anonymous said...

bahut marmikta se ani baat kahi hai,khwab dekhna log bhul gaye hai,dusron par hasna sikh gaya hai shayad.