तुम्हारा प्रायश्चित

छत पर धूप को सेकना
तुम्हें झुठलाने जैसा है,
तुम्हें सच मानना है आत्महत्या जैसा।
तुम्हारा आँखें बन्द कर लेना
डूब जाने जैसा नहीं,
रात जैसा है,
तुम्हारा देर तक अलविदा के पत्थर पर खड़े रहना
तुम जैसा नहीं,
सड़क या दुकान या शहर जैसा है।

जिस तरह फूटते हैं गुब्बारे,
शाम होती है,
पेड़ देते हैं फल,
किताबें खो जाती हैं,
रेडियो बजता है,
दरवाजों पर ताले लगे होते हैं,
फ़ोन मिलते हैं स्विच्ड ऑफ़,
साँस नहीं आती,
सोमवार आते हैं,
इसी तरह किसी दिन
घर से निकलकर चलता चला जाऊँगा मैं
और कभी नहीं लौटूंगा।

मेरा इंतज़ार किया जाए।
यह तुम्हारा प्रायश्चित हो।



आप क्या कहना चाहेंगे? (Click here if you are not on Facebook)

11 पाठकों का कहना है :

पंखुडी said...

आपकी हर कविता भावनाओं की चरम सीमा तक दिल को छू जाती है
ये कविता भी कोई अपवाद नही उसका

वेद रत्न शुक्ल said...

गुरु! इतनी कम उम्र में इतना उम्दा लेखन। लगता है रुढ़की आकर आपसे मिलना पड़ेगा।

वेद रत्न शुक्ल said...

तेरी वो सहेली कहती है... में 'कि भीतर कुछ टूटे
तो सुनाई न दे छन-छन' में छन-छन ठीक नहीं। छन-छन की आवाज तो पायल की होती है। शीशा टूटता है तो छन जैसी ही आवाज(चन...) होती है लेकिन फिर भी छन-छन घूंघरू बजते हैं। छन-छन को यहां क्षण-क्षण के अर्थ में लें तो ठीक है लेकिन तब पंक्ति का स्वरूप बदलना पड़ेगा। हालांकि मैं कोई समालोचक नहीं हूँ, सामान्य बुद्धि ने यहां खटका महसूस किया तो बता रहा हूँ।

गौरव सोलंकी said...

शुक्रिया शुक्ल जी और पंखुड़ी जी। अब आपको मिलने के लिए गुड़गाँव आना पड़ेगा। रुड़की छूट गया है।
छन छन वाली बात में शायद ठीक कह रहे हैं आप। अब से आवाज़ों का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा।

Vinay said...

बहुत ख़ूब, इतना संवेदनशील, मैं रो पड़ूँ

---
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/

आलोक साहिल said...

gajab ki sanvedna hai GAURAV BHAI,
aanand aa gaya.
ALOK SINGH "SAHIL"

सुशील छौक्कर said...

वाह बन्धु फिर से कमाल की रचना। आपके यहाँ आकर कुछ अलग सा आनंद मिलता हैं। पर दोस्त काफी दिनों के बाद क्यों?

विवेक said...

क्या कहूं यार तुमसे...बस यूं समझो कि जब मन को ठंड लगने लगती है अकेलेपन के मौसम में...तो यहां आकर तुम्हारे अल्फाज ओढ़ लेता हूं...अच्छा लगता है

विवेक सिंह said...

कमाल का लिखते हैं आप . बहुत खूब !

Anonymous said...

Hi Brother,
Your pen shines much.

I m hiren pandya rahi.
I got your link from one of your senior, Ronak Singhvi.
I also write ghazals but not of your kind but your comments on my ghazals will be really helpful for me

www.hprahi.com

this is my blogs link . I will wait for your suggestions.

महेन said...

चिर घृणा जैसा कुछ? परिचय प्रेम का प्रवर्तक है और प्रेम घृणा का?
मज़ाक ही में सवाल खड़ा कर रहा हूँ, गंभीरता से मत लेना। आई नो एग़्ज़ैक्टली हाऊ इट फ़ील्स।
कविता खूब है कहने की ज़रूरत नहीं।

और हाँ कहीं भी जाओ लिखना मत छोड़ना। ;-)